हाइलाइट्स
राजस्थान बीजेपी अध्यक्ष सीपी जोशी का नया आदेश
सीपी जोशी ने कार्यकर्ताओं को कहा व्यक्तिगत नारे ना लगाएं
व्यक्तिगत नारों से पार्टी धड़ों में बंट जाती है और चुनाव में नुकसान होता है
जयपुर. राजस्थान बीजेपी (Rajasthan BJP) में अब पार्टी आलाकमान के संदेशों की गूंज साफ सुनाई देने लगी है. नए प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी (CP Joshi) के फरमान के बाद नेताओं के लिए खुद के नारे लगवाना मुसीबत का सबब बन सकता है. प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी संभालने के आठ दिन में ही सीपी ने नेताओं के साथ कार्यकर्ताओं को भी कड़ी नसीहत दे डाली है. प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि नो स्लोगन, नो पब्लिसिटी प्लीज. काम करो, नाम की चिंता न करो.
27 मार्च को प्रदेशाध्यक्ष का पद संभालने के बाद जनसभा को संबोधित करते हुए सीपी जोशी के सामने जब कार्यकर्ता नारे लगाने लगे तब उन्होंने उनको दो टूक शब्दों में सख्त हिदायत दे डाली. उसमें भावुकता भी थी तो प्रदेश अध्यक्ष के कड़े निर्देश भी. सीपी ने जोशीले कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि
मुझे जिंदा देखना चाहते हो तो मेरा आज के बाद नारा मत लगाना. अगर नारे ही लगाने हैं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,अमित शाह, जेपी नड्डा और बीजेपी जिंदाबाद के साथ भारत माता के नारे ही लगने चाहिए. इसके अलावा और कोई भी नारा नहीं लगना चाहिए. सोमवार को टोंक में भी बीजेपी स्टेट चीफ सीपी जोशी ने अपना बयान दोहराया और कार्यकर्ताओं को व्यक्तिगत नारे लगाने से साफ मना कर दिया.
चुनावी साल में सीपी के नये फरमान के मायने क्या
सीपी को पार्टी आलाकमान की ओर से गुटबाजी से बचने के साफ निर्देश दिये गये हैं. दिल्ली दरबार का साफ संदेश है कि खुद कार्यकर्ता की तरह काम करो. होर्डिंग बैनर, पोस्टर और नारों से बचे रहो तभी लंबे वक्त तक राजनीति की मुख्यधारा में रह पाओगे. सीपी पौने नौ साल से सांसद हैं. वो दिल्ली की नब्ज भली भांति जानते हैं. नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा की वर्किंग को करीब से देखा है. बीजेपी को सूबे की सत्ता में लौटना है. उसके बाद अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में मोदी को फिर पीएम बनाना है.
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नारों से पार्टी धड़ों में बंट जाती है और चुनाव में नुकसान होता है
इसलिए बीजेपी ने जो लक्ष्य तय किये हैं उनमें नेताओं के नारों का भी मसला है. नारे एकता कम करते हैं और गुटबाजी को बढ़ावा देते हैं. नेताओं के कार्यकर्ता अपने नेता को बड़ा बनाने के फेर में प्रतिस्पर्धा पर उतर आते हैं. नतीजा पार्टी धड़ों में बंट जाती है और देर सवेर चुनावों में इसका नुकसान उठाना पड़ता है. सीपी को दिल्ली दरबार की उम्मीदों पर खरा उतरना है. विवादों से बचना है. इसलिए उन्हें केंद्र की लोक कल्याणकारी योजनाओं में बीजेपी की भलाई दिखती है. इससे एक पंथ दो काज होंगे. एक तो दिल्ली तक मैसेज पॉजीटिव पहुंचेगा और पार्टी गुटबाजी से भी बची रहेगी.
पीएम मोदी को सिर्फ काम पसंद है
नये दौर की बीजेपी में पीएम नरेंद्र मोदी सबसे बड़े किरदार हैं. उन्हें नाम की बजाय काम पसंद हैं. अमित शाह ने अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में बीजेपी को विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने का सम्मान दिलाया तो अब जेपी नड्डा इसे जन जन की पार्टी बनाने के लिए दिन रात एक कर रहे हैं. पूरा देश भाजपामय है और संगठन की मजबूती ही इस पार्टी की सबसे बड़ी ताकत. जाहिर है सीपी दिल्ली के संदेश को पार्टी के ग्रास रूट के कार्यकर्ता तक पहुंचाकर मिशन 2023 की तैयारी में जुट गए हैं. इसमें प्रदेश नेतृत्व से लेकर पन्ना प्रमुख तक एकमुखी होकर बीजेपी को अजेय बनाने का संकल्प लेते दिखेंगे. बीजेपी में अब युवा नेताओं का दौर है. उन्हें पार्टी ने हवा में नहीं जमीन पर चलना सिखाया जा रहा है. सीपी भी अपनी एक ऐसी इमेज गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं जिसमें वो काम के प्रदेशाध्यक्ष बनना चाहते हैं नाम के नहीं.
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FIRST PUBLISHED : April 03, 2023, 19:11 IST